भगवान कार्तिकेय की परम इच्छानुसार संत सुंदर जी द्वारा रचित कल्याणकारी ‘स्कंद कवच’

‘स्कंद कवच’

‘स्कंद’ ही कवच है
‘स्कंद’ ही रक्षा है
‘स्कंद’ परमेश्वरा
‘स्कंद’ ही कैलाश है

‘स्कंद’ नेत्रों की मणि
‘स्कंद’ नासिका प्राण है
‘स्कंद’ जिह्वा अमृतपान
‘स्कंद’ ही श्रोत्र देवगान है

‘स्कंद’ देही परमतत्व
‘स्कंद’ ही मन आरंभ है
‘स्कंद’ विचार जन्म स्त्रोत
‘स्कंद’ ही भक्तों का दुर्ग स्थान है

‘स्कंद’ मोक्ष है सदा
‘स्कंद’ ही परमानंद है
‘स्कंद’ ज्ञान का सृष्टिकर्ता
‘स्कंद’ ही रम्य में अति रमणीय है

‘स्कंद’ करुणा की जननी
‘स्कंद’ ही जन्मरोग विनाशक है
‘स्कंद’ हर रोग की औषधि
‘स्कंद’ ही रक्षक कृष्णा है

‘स्कंद’ काया का संरक्षक
‘स्कंद’ ही सर्वोच्च है
हे ‘स्कंद’! बन कवच, हम सभी की
रक्षा कीजिये! रक्षा कीजिये!! रक्षा कीजिये!!!


(अनूदित)

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